- महारानी रेवती की कथा
विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में मेघकूट नाम
का नगर था । वहां के राजा चन्द्रप्रभ थे । उन्हें कई विद्यायें सिद्ध
थीं । एक दिन राजा अपने पुत्र को राज्य सौंप कर यात्रा को चल दिये
। वे चलते-चलते दक्षिण देश के मथुरा नगर में पहुंचे । वहां एक गुप्ताचार्य
मुनि थे । उनके पास क्षुल्लक बन कर रहने लगे परन्तु सब विद्यायें
नहीं छोड़ीं ।
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- अन्जन चोर की कहानी
राजगृह नगर में अंजन चोर रहता था । वह केवल चोर ही नहीं था, व्यभिचारी भी था । विलासिनी नामक वेश्या से उसका बहुत प्रेम था । एक दिन वेश्या ने वहां के राजा प्रजापाल की रानी के गले में रत्नों का हार देखा और चाहा कि यह रत्नहार मुझे मिल जावे ।
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- अनन्तमती की कहानी
चम्पानगरी में प्रियदत्त सेठ रहते थे । उनकी पुत्री का नाम अनन्तमती था । वह रूपवती तो थी ही और सेठ जी ने विद्याभ्यास करा कर सोने में सुगन्ध ही मिला दी थी । अष्टाह्निका के पहले सेठ प्रियदत्त श्री धर्मकीर्ति मुनि के पास गये और अपनी पुत्री को भी साथ ले गये । वहां उन्होनें मुनिराज के पास आठ दिन का ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया । पिता की देखादेखी अनन्तमती ने भी ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया । उस समय तो वह छोटी थी, परन्तु जब युवती हुई और सेठ जी उसका विवाह करने लगे तो उसने नहीं करवाया ।
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- वारिषेण राजपुत्र की कथा
बिहार प्रान्त के राजगृह नगर में राजा श्रेणिक राज्य करते थे । उनके कई पुत्रों में से एक पुत्र का नाम वारिषेण था । वे छोटी ही उमर में मुनि हो गये थे । वे मुनिराज जहां - तहां विचरते और लोगों को उपदेश देते हुये पलाशकूट नगर में पहंुचे । वहां राजा श्रेणिक के मंत्री का पुत्र पुष्पडाल रहता था । वह सच्चा सम्यग्दृष्टि और दान पूजा में तत्पर था ।
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- विष्णु कुमार महामुनि की कथा
उज्जैन में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे । जैन घर्म पर उनका बड़ा विश्वास था उनकी सभा में बलि, वृहस्पति, प्रहलाद और नमुचि ये चार मंत्री थे जो चारो ही मिथ्यात्वी थे ।
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- जिनभक्त मेंढ़क की कहानी
राजगृही नगरी में एक सेठ रहता था । उसका नाम नागदत्त था और उसकी सेठानी का नाम भवदत्ता था । सेठ नागदत्त के स्वभाव में मायाचारी अधिक था । वह कहता कुछ था करता कुछ था और मन में कुछ और ही विचारा करता था । सेठ जी ने अपनी आयु पूर्ण होने पर शरीर छोड़ा और मर कर अपने ही आंॅगन की बावड़ी में मेंढ़क हुआ । ठीक है कि मायाचारी मनुष्य को प्शु होना पड़ता है । इसलिये श्री गुरु ने शिक्षा दी है कि - मन में हो सो वचन उचरिये, वचन होय सो तनसों करिये ।
जब मेंढ़क ने अपने पूर्व भव की स्त्री भवदत्ता को बावड़ी पर देखा तो उसे पूर्व भव की याद आ गई ।
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- सत्यघोष की कहानी
इसी भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर था । वहां राजा सिंहसेन राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम रामदत्ता था । उसी नगर में एक पुरोहित रहता था उसका नाम श्री भूत था । वह बड़ा ही ठगिया था । लोगों को धोका देने के लिये उसने अपने जनेऊ में एक छोटा सा चाकू बांध रखा था और लोगों से कहा करता था कि यदि मैं भूल से झूंठ बोल जाऊं तो इस चाकू से अपनी जीभ काट डालूं ।
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- वृषभसेना की कहानी:
काबेरी नगर में एक ब्राह्मण रहता था । उसकी लड़की का नाम नागश्री था । वह जैन मन्दिर में झाड़ने बुहारने का काम किया करती थी ।
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- यमदण्ड कोतवाल की कथा
नासिक नगर में राजा कनकरथ रहते थे । वे प्रजा का पालन करने में सदा सावधान रहते थे । उस नगर के थानेदार का नाम यमदण्ड था । यमदण्ड की माता का नाम वसुन्धरा था । वह छोटी ही उम्र में विधवा हो गयी थी और व्यभिचारिणी भी अधिक थी ।
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- साधुभेषधारी चोर की कहानी
कौसाम्बी नगरी में राजा सिंहरथ राज्य करते थे । वे बड़े न्यायवान थे । उनकी स्त्री का नाम विजया था । उस नगरी में एक चोर रहता था । वह साधु के वेष में रहता था और बड़ के वृक्ष की डाल से सींका बांधकर उसमें बैठ जाता था ।
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- सुकुमाल मुनि की कथा
प्राचीन समय की बात है उज्जयिनी नगरी में सेठ सुरेन्द्र दत्त रहा करते थे । उनकी पत्नी का नाम यशोभद्रा था । उनके पास इतनी सम्पत्ति थी कि राज भण्डार भी उनके समक्ष खाली नजर आता था परन्तु सेठ के कोई पुत्र नहीं था । इस कारण वह हमेशा ही चिंतित और परेशान रहा करते थे ।
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